- मां कामाख्या भवानी मंदिर की चौखट पर माथा टेकने से पूरी होती है भक्तो की मुराद
- 10 दिनी मां कामाख्या भवानी धाम का मेला प्रारंभ
सीसीटीवी कैमरे से होगी मेला परिसर से लेकर गोमती घाट तक निगरानी - 10 दिनी मेला परिसर में होते हैं विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
- गोमती नदी में स्नान कर मंदिर की चौखट पर माथा टेकने वाले भक्तों की सुरक्षा हेतु गोताखोर तथा पुलिस बल की अतिरिक्त व्यवस्था
✍दिनेश कुमार वैश्य, मवई आयोध्या
- मवई विकासखंड की अंतिम पूर्वी सीमा गोमती नदी के समीप स्थित प्राचीन प्रख्यात मां कामाख्या भवानी मंदिर परिसर में लगने वाला शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन से 10 दिन मेला इस समय पूरे शबाब पर है जल के मालिक इंद्रदेव के निरंतर कहर ढहाने के बावजूद भी नवरात्र के प्रथम दिन से ही मेला मीदेवी भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है यहां दोनों नवरात्र क्रमशः गर्मी ऋतु में चैत मास तथा ठंडी के प्रारंभ में शारदीय नवरात्र में 10 दिन मेला आयोजित होता है।
- इस शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक प्रतिदिन मध्यान्ह बाद 2:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक संगीतमय श्रीराम कथा व देवी भागवत पाठ कथा वाचक पंडित माताफेर तिवारी निर्मोही द्वारा बड़े मनमोहक अंदाज वमधुर स्वर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भगवान श्रीकृष्ण व आदिशक्ति मां भगवती दुर्गा मैया सहित अन्य देवी देवताओं की लीलाओं कथाओं का वर्णन बखान किया जाता है जहां शाम के समय कथा श्रोताओं का जमावड़ा होता है जिसमें पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं
किशोरियों की संख्या अधिक देखी गई । - बताते चलें यहां 9 दिन श्री रामचरितमानसअखंड पाठ ,श्रीमद् देवी भागवत पुराण कथा, देवी पाठ, दुर्गा सप्तशती पाठ, सत्यनारायण व्रत कथा, संगीतमय श्रीराम कथा, सुंदरकांड पाठ अलग-अलग तिथि में देवी भक्तों द्वारा मेला परिसर में कराया जाता है इस समय घर घर में महामाई आदिशक्ति मां भगवती विराजी हुई है जिनकी स्थापना देवी भक्तों द्वारा अपने घरों में साफ-सफाई करके सुव्यवस्थित ढंग से किया गया है इस अवसर पर क्षेत्र के प्रमुख स्थानों चौराहों गांव में अष्टभुजी मां दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के साथ की गई है क्षेत्र के सैकड़ों स्थानों पर स्थापित मूर्तियों की प्रथम दिन प्राण प्रतिष्ठा के बाद अलग-अलग दिनों में अलग-अलग तिथियों में देवियों की पूजा आराधना अर्चना वैदिक मंत्रोचार
के माध्यम से विद्वान पंडितों की वाणी द्वारा की जाती है इन स्थानों पर स्थापित मूर्तियों का विसर्जन दसवें दिन बड़े धूमधाम के साथ संबंधित दुर्गा पूजा समिति के पदाधिकारियों कार्यकर्ताओं द्वारा शोभायात्रा निकालकर गोमती नदी के रेछ घाट, मां कामाख्या भवानी ,घाट कल्याणी नदी के रामसनेहीघाट पर विधिक ढंग से प्रशासनिक व्यवस्था की देखरेख में विसर्जित किया जाता है । - ज्ञातव्य हो कि विकासखंड मवई मुख्यालय से लगभग 27 किलोमीटर दूर पूर्व स्थित गोमती नदी के निकट सिद्धपीठ मां कामाख्या भवानी मंदिर विद्वान है जहां सप्ताह में दो दिन सोमवार एवं शुक्रवार के दिन मेला लगता है जिसमें सैकड़ों की तादाद में देवी भक्त सुबह शाम की आरती में शामिल होते हैं।
- इसके सिवा वर्ष के दोनों नवरात्रों में 9 दिन मेले की
व्यवस्था तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रत्येक वर्ष होता है किवदंती ओं के मुताबिक यहां माता जी की चौखट पर जिसने भी सच्चे मन से आत्मविश्वास के साथ माथा देखकर जो भी कामना की है वह कभी निराश नहीं हुआ बताया जाता है कि यहां मां की चौरी “पिंडी” का स्नान कराने से एकत्र नीर को आंखों में लगाने से गई हुई रोशनी पुनः वापस आ जाती है बताते चलें कि मंदिर के करीब 500 मीटर पश्चिम स्थित घनघोर जंगल में एक सुंदर सा स्थान है जिसे गहरा का जंगल कहा जाता है इसी स्थान पर कभी राजा सुरथ व समाधि वैश्य ने तपस्या का कर माता भवानी जगत जननी के दर्शन पाए थे जिसका वर्णन दुर्गा सप्तशती पुराण में दर्शाया गया है इस स्थान पर आज भी तपस्या स्थल जैसा प्रमाण दिखाई देता है खंडहर से सटी वहीं गोमती नदी की कलकल करती निर्मल स्वच्छ धारा लोगों का मन मोह रही है मां कामाख्या भवानी धाम मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित बृज किशोर मिश्र व पंडित संतोष कुमार मिश्र ने संयुक्तम रूप से बताया कि मां की चौखट पर माथा टेकने वाले भक्तों की मन की मांगी मुराद पूर्ण होती है इसमें तनिक संदेह नहीं है जिसका प्रमाण देते हुए उन्होंने कहा कि मंदिर परिसर व मेला परिसर में जितने भी मंदिर शिवालय धर्मशाला बारादरी का निर्माण हुआ है वह किसी ना किसी भक्त द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने के बाद कराया गया है। - मेला परिसर में प्राचीन वृक्षों में पीपल नीम जामुन शीशम बरगद के बहुत मोटे मोटे बड़े बड़े पुराने वृक्षों से मेला परिसर की सुंदरता में चार चांद लग जाता है इस समय नवरात्र के 9 दिन सुबह 5:00 बजे एवं शाम को 7:00 बजे की मां भगवती की आरतीमें भारी भीड़ देखने को मिलती है तथा आरती के बाद सुबह से लेकर देर रात तक दर्शनार्थियों देवी भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है मेले में आने वाले भक्तों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक रहती है आरती के समय ढोल मजीरा नगाड़े घड़ियाल की आवाज एवं भक्तों द्वारा लगाए जा रहे मां के अलग-अलग नामों को लेकर जयकारों से सारा वातावरण भक्त मय नजर आ रहा है गोमती नदी के तट से स्नान कर अष्टमी की रात में पेट के बल लेट लेटकर परिक्रमा करने वाले भक्तों को मार्ग सुगम ना होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ता है करीब 1 किलोमीटर लंबे मार्ग की दशा को सुधारने हेतु देवी मां के भक्तों ने प्रशासन एवं प्रबंध कमेटी से मांग की है नौ दिवसीय मेले का समापन अष्टमी की हवनो उपरान्त तथा नवमी के दिन लगने वाले विशाल मेले के आयोजन के बाद होता है।