राज्य निर्वाचन आयोग ने जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुनाव सीधे जनता से कराने का प्रस्ताव दिया है। प्रस्ताव में पिछले सात सालों में नगर निगम महापौर व नगर पालिका परिषद अध्यक्ष के मुकाबले जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के आंकड़ों का ब्यौरा दिया है।
इस वजह से दिया प्रस्ताव
राज्य निर्वाचन आयोग के अपर निर्वाचन आयुक्त वेद प्रकाश वर्मा के अनुसार नगर निगम महापौर और नगर पालिका परिषद अध्यक्ष जनता से चुनाव में जीत कर आते हैं। इनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) नहीं आते। जबिक जिला पंचायक अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुख पंचायत के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं इसलिए इनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ज्यादा आते हैं। इस कारण जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुख अपना कार्यकाल पूरा नहीं पाते और अपने पद की गरिमा को बचाने की भी जुगत में लगे रहते हैं। इस वजह से अन्य काम प्रभावित होते हैं।
जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुख के खिलाफ पहले दो साल में एक बार अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया थी। लेकिन मायावती (Mayawati) के शासनकाल में एक साल में ही अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने का प्रावधान कर दिया गया।
42 जिला पंचायत अध्यक्ष हटाए गए
2012 से लेकर 2019 तक अब तक 42 जिला पंचायत अध्यक्षों को अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाया जा चुका है। सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव 2013 में लाए गए जिनकी संख्या 23 थी।
पंचायतीराज ग्राम प्रधान संगठन के प्रवक्ता ललित शर्मा ने राज्य निर्वाचन आयोग के इस कदम का स्वागत किया है। उन्होंने इसे सराहनीय व योग्य बताया है। उनका मानना है कि अगर प्रस्ताव पास किया जाता है, तो जिला पंतायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत सदस्यों की खरीद फरोख्त, उनके बीच सियासी गुटबाजी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा।