जब विवादित ढांचा टूटा था तब सत्येन्द्र दास की गोद में थे, श्रीरामलला।
अयोध्या।
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को जब कारसेवकों द्वारा विवादित ढांचे को तोड़ा जा रहा था, उस समय आचार्य सत्येन्द्र दास घटनास्थल पर ही मौजूद थे। तोड़फोड़ और हंगामे के बीच राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास रामलला को लेकर सुरक्षित स्थान की ओर भागे थे, ताकि रामलला की मूर्ति को किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुंच पाए।
अस्वस्थ होने से पूर्व आचार्य सत्येन्द्र दास पूरे मनोयोग से श्रीरामलला की सेवा-पूजा करते रहे। उन्हें आजीवन राम मंदिर का मुख्य पुजारी घोषित किया गया था। आज यानी 12 फरवरी को सत्येन्द्र दास ने लखनऊ के पीजीआई में अंतिम सांस ली।
अयोध्या जिले से महज 98 किलोमीटर की दूरी पर संत कबीरनगर की धरती पर वर्ष 1945 जन्मे आचार्य दास बचपन से अपने पिताजी के साथ अयोध्या आते रहते थे। उन्हें अयोध्या नगरी भी प्रिय लगती थी। वे बचपन से ही संत अभिराम दास जी के आश्रम में आते रहते थे। संत अभिराम दास जी वही हैं, जिन्होंने 22 व 23 दिसंबर 1949 को गर्भगृह में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीताजी की मूर्ति प्रकट होने का दावा किया था। इन्हीं मूर्ति के आधार पर अदालत में केस भी चला था। आचार्य सतेन्द्र दास इनसे काफी प्रभावित हुए और इन्हीं के आश्रम में रहने लगे।
वर्ष 1958 में उन्होंने घर त्याग करते हुए संन्यास लेने का फैसला किया। पिताजी के काफी समझाने पर भी नहीं माने और संन्यास ग्रहण कर लिया। आश्रम से ही अपनी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण करते हुए 1975 में संस्कृत महाविद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की। 1976 में संस्कृत डिग्री कॉलेज में नौकरी करने लगे। शिक्षक के रूप में उनका शुरुआती वेतन 75 रुपए था।
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