गुरु पूर्णिमा हर साल अषाढ़ मास के पूर्णिमा तिथि को क्यों मनाया जाता है।
अयोध्या।
गुरु पूर्णिमा हर साल अषाढ़ मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन गुरुओं को याद करने का धार्मिक महत्व है। यह दिन गुरुओं को धन्यवाद देने, उनका आशीर्वाद लेने और प्राप्त ज्ञान का सम्मान करने का भी अवसर होता है।
गुरु पूर्णिमा की कहानी में उस समय की बात कही जाती है जब शिवजी ने अपने शिष्य परशुराम को ज्ञान देने का निर्णय लिया। परशुराम जो एक अत्यंत महान योद्धा थे, शिवजी के यह निर्णय स्वीकार कर रहे थे क्योंकि उन्होंने सबका आदर किया था कि गुरु को शिष्य का सबसे बड़ा और उच्चतम आदर्श माना जाना चाहिए।
उत्सव के दिन परशुराम, अपने गुरु शिवजी के चरणों में बैठे और चारों ओर के लोगों को ज्ञान की बातें समझाने लगे। वे अपने गुरु की स्मृति, आदर्श और मदत के बिना किसी भी कार्य की सम्पन्नता की बात करते थे। इस प्रकार उनका ज्ञान भंडार महाराष्ट्र के प्रदेश में फैल गया और लोग उनकी वाणी सुनकर उनके चरणों में जाकर आशीर्वाद लेने लगे।
इसी रूप में गुरु पूर्णिमा का पर्व हर साल मनाया जाने लगा। इस दिन छात्राओं ने अपने गुरुओं के पास जाकर उन्हें धन्यवाद दिया और उनकी सेवा की। गुरु पूर्णिमा पर लोग एक दूसरे के प्रति समर्पण, आदर्श, और सद्भावना की भावना के साथ मिलकर पूजन करते हैं।
इसी दिन के दौरान, छात्र गुरुओं के पास जाकर आशीर्वाद व गुरुवाणी की पढ़ाई करते हैं। यह गुरु अवस्था के मार्ग पर चलने का भी एक अवसर होता है।
गुरु पूर्णिमा की कहानी हमें यह दिखाती है कि गुरु शिष्य की शांति, समृद्धि, और उच्चतम आदर्श का प्रतीक होता है। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से हम अपने जीवन को समृद्ध बना सकते हैं और उन्नति कर सकते हैं। परंपरागत भूमिका को जागृत करने के लिए, धर्म, मजबूत संवेदनशीलता और मेहनत का चयन करके हम अपने गुरु की साधना कर सकते हैं। इस दिन कई लोग गुरु मंत्र जप और मेधावी और ज्ञानवान होने की कामना करते हैं।
यह कहानी हमें गुरु और शिष्य के संबंध की महत्वपूर्णता और गुरुत्व का महत्व बताती है। गुरु पूर्णिमा हमें एक सुनिश्चित मार्गदर्शक ध्येय की ओर ले जाता है और हमें अपने जीवन में सफलता की ओर आग्रह करता है।